बजी खतरे की घंटी, गर्मी आने से पहले 3.5 फीट गिरा भू-जलस्तर

भोपाल। राजधानी में फरवरी में ही जलसंकट जैसी स्थिति निर्मित हो गई है। बारिश कम होने से जलस्तर भी पिछले साल के मुकाबले 3.5 फीट कम हो गया है। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने विगत दिनों कलेक्टर को रिपोर्ट सौंपी थी कि शहर में सामान्य वर्षा 1146 मिलीमीटर होती है। इसकी जगह 2018 में 795.78 मिलीमीटर औसत बारिश हुई है, जो कि सामान्य से 26.6 प्रतिशत कम है। वहीं 2017 में भी सामान्य बारिश से 25.5 प्रतिशत कम बारिश हुई थी। इतना ही नहीं 2017 में 636 मिलीमीटर बारिश हुई थी, जो सामान्य से 31 प्रतिशत कम थी। इस तरह लगातार तीन वर्षों से कम बारिश होने के कारण भू-जल स्तर में भारी गिरावट आई है।
लिहाजा, मार्च-अप्रैल जैसी स्थिति फरवरी माह में ही बनती नजर आ रही है। बता दें कि शहर में करीब छह लाख लोग पूरी तरह भू-जल पर निर्भर हैं। 2014 में भोपाल जिले को जल अभावग्रस्त घोषित किया गया था। चार साल बाद दोबारा कलेक्टर ने जिले को जलअभाव ग्रस्त घोषित किया है। राजधानी के श्याम बोरबेल के संचालक श्याम प्रसाद मालवीय ने बताया कि भोपाल में औसत बोरिंग के लिए 295 फीट पर पानी मिलता है, जो इस साल फरवरी में ही 492 से 500 फीट तक चला गया है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ेगी यह जलस्तर और भी नीचे जाने की संभावना है। उन्होंने बताया कि इस बार भोपाल में 1000 फीट तक भी बोरिंग करनी पड़ सकती है, हालांकि, गर्मियों में बोरिंग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
2016 से सेमी क्रिटिकल जोन में है भोपाल
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड ने 2011 तक के आंकड़ों के आधार पर जनवरी 2016 में जारी रिपोर्ट में भोपाल को सेमी क्रिटिकल जोन में शामिल किया है। जियोलॉजी के विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र जैन के अनुसार भोपाल में बिना किसी साइंटिफिक अध्ययन के न केवल काले पत्थर, बल्कि लाल पत्थर वाले क्षेत्रों में भी अंधाधुंध कॉलोनियां विकसित हो गई हैं। काले पत्थर के क्षेत्रों में पानी आसानी से मिलता है, लेकिन अब जिन क्षेत्रों में कॉलोनियां विकसित हो गईं हैं, वहां पानी बमुश्किल मिल रहा है।
डेड स्टोरेज लेवल से महज दो फीट ही ऊपर है बड़े तालाब का पानी
बड़े तालाब का वर्तमान में जल स्तर 1654.05 फीट है, जो कि डेड स्टोरेज लेवल से 2.05 फीट अधिक है। यदि 20 या 15 एमजीडी पानी प्रतिदिन भी जून तक सप्लाई होता है तो झील का जल स्तर डेड स्टोरेज लेवल 1652 फीट से भी नीचे उतर जाएगा। बड़ी झील से यदि पानी की सप्लाई कम होगी तो इसका सीधा असर शहर की आठ लाख की आबादी पर पड़ेगा।
अल्टरनेट-डे पानी सप्लाई के प्लान पर हो सकता है विचार
भोपाल जिला जल अभावग्रस्त घोषित होने के बाद नगर निगम एक बार फिर अल्टरनेट-डे पानी सप्लाई प्लान लागू करने पर विचार कर सकता है। हालांकि, सच्चाई ये है कि वर्तमान में आधे शहर में अल्टरनेट-डे ही पानी सप्लाई हो रहा है। जिसे निगम कानूनी तौर पर लागू करना चाहता है।
लीकेज से बर्बाद होता है 11 करोड़ लीटर पानी
नगर निगम शहर में बड़ी झील, नर्मदा, कोलार, केरवा और भू-जल स्रोतों से रोजाना करीब 49 करोड़ 50 लाख लीटर पानी सप्लाई करता है। इसमें से 11 करोड़ लीटर पानी लीकेजों से बर्बाद हो जाता है। जबकि, 25 मिलियन गैलन पानी यानी लगभग आठ करोड़ लीटर पानी की कटौती की जा रही है।
घरों में नहीं है वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था
शहर में करीब चार लाख घर हैं। एक लाख से अधिक घरों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम होना चाहिए था, लेकिन 10 हजार घरों में भी नहीं है। भवन अनुज्ञा देने के साथ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने की धरोहर राशि ली जाती है। ये रिफंडेबल है, पर इस राशि को लेने कोई नहीं आता है। लिहाजा 10 करोड़ रुपए निगम के पास जमा हो गए हैं।
पिछले 9 सालों में बड़े तालाब की स्थिति
2011-1655.05
2012- 1662.10
2013 -1664.10
2014 -1664.50
2015 -1660.90
2016 -1661.45
2017 -1664.25
2018 -1658.25
2019 -1656.85
(नोटः जलस्तर फीट में )
जल अभाव ग्रस्त घोषित होने पर यह होगा असर
- कॉलोनाइजर्स और निजी लोग निर्माण कार्य बंद करवा सकते हैं।
- प्रोजेक्ट के मकानों पर लगाम लग सकती है।
- किसान भी अपनी खेती के लिए बोर, कुआं या झील के पानी का उपयोग नहीं कर पाएंगे।
- रबी की फसल की कटाई होने वाली है। खरीफ की फसल के किसान अब वर्षा जल का ही उपयोग कर पाएंगे।
- जो उद्योग बोर से या झील से पानी ले रहे थे, उसकी सप्लाई भी बंद हो सकती है।
रिपोर्ट के आधार पर जलअभाव ग्रस्त घोषित किया
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की रिपोर्ट के आधार पर भोपाल को जलअभाव ग्रस्त घोषित किया गया है। वहीं अवैध बोरिंग के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं।
-डॉ. सुदाम पी खाडे, कलेक्टर